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Ayodhya Ram Mandir: मणिशंकर अय्यर की नई किताब: राम मंदिर पर राजीव गांधी का रुख क्या था? helobaba.com

विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के देवकी नंदन अग्रवाल ने ताला खोलने के बैकग्राउंड के बारे में विस्तार से बताया है. उनका कहना है कि मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह ने 19 दिसंबर 1985 को अयोध्या का दौरा किया था.

रिटायर्ड जस्टिस शिव नाथ काटजू के नेतृत्व में वीएचपी के एक प्रतिनिधिमंडल ने सीएम से मुलाकात की और तर्क दिया कि अंदर के प्रांगण के दरवाजों पर ताले किसी भी अदालत या मजिस्ट्रेट के आदेश के तहत नहीं लगाए गए थे. ये ‘भगवान श्री राम की पूजा करने के संवैधानिक अधिकारों में हस्तक्षेप है.’

मुख्यमंत्री ने प्रतिनिधिमंडल की बात ‘चुपचाप सुनी’, जिससे ऐसा लगा कि उन्होंने ‘रिकॉर्ड्स की बारीकी से जांच’ करने का आदेश दिया हो.

इसके बाद, जब मामला 1 फरवरी 1986 को फैजाबाद के डिस्ट्रिक्ट सेशन जज के सामने उठाया गया, तो जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) ने ‘स्पष्ट रूप से स्वीकार किया’ कि ‘परिसर को बंद करने के लिए किसी भी अदालत या मजिस्ट्रेट का कोई आदेश नहीं था’.

फिर, डीएम और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने पुष्टि की कि ‘सार्वजनिक शांति बनाए रखने के लिए ताले जरूरी नहीं थे’ और श्री राम जन्मभूमि पर ‘कानून और व्यवस्था’ बनाई रखी जा सकती है, ‘चाहे ताले हों या नहीं’. जिस पर डिस्ट्रिक्ट सेशन जज ने अपील स्वीकार कर ली और ताले हटाने का आदेश दिया.

आदेश दिए जाने के कुछ ही मिनटों के भीतर ताले तोड़ दिए गए, और हिंदू श्रद्धालु का तूफान उमड़ पड़ा. इस घटना को लेकर स्पष्ट रूप से कुछ योजना बनाई गई थी.

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