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कांग्रेस के न जाने के फैसले में दम,लेकिन क्या ये ‘सेक्युलर’ है? Congress’s decision of not going has merit, but is it ‘secular’? helobaba.com

क्या कांग्रेस की स्थिति सचमुच धर्मनिरपेक्ष है?

कांग्रेस के बाद के स्पष्टीकरणों ने एक बार फिर पार्टी में वैचारिक स्पष्टता की कमी को उजागर किया. यह कांग्रेस के पहले की तरह खेले गए सॉफ्ट हिंदुत्व कार्ड से अलग नहीं था, जब राहुल गांधी ने मंदिरों का दौरा करने की कोशिश की थी और पार्टी ने उन्हें जनेऊधारी ब्राह्मण के रूप में प्रोजेक्ट किया था.

अगर और पीछे जाएं तो, यह राजीव गांधी ही थे जिन्होंने राम जन्मभूमि स्थल पर ताले खोलने के फैसले का समर्थन किया था. उनकी सरकार ने मंदिर के शिलान्यास की अनुमति देकर इसका पालन किया. इसके बाद राजीव गांधी ने राम राज्य लाने के वादे के साथ 1989 में अपना चुनाव अभियान अयोध्या से शुरू किया. उस चुनाव में कांग्रेस की करारी हार हुई, उसकी सीटें 404 से घटकर 197 रह गईं, जबकि बीजेपी की संख्या में बड़ा उछाल आया और उसके बाद से उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा.

इसके बाद भी कांग्रेस अपने पिछले अनुभव से सबक सीखने में फेल रही है. पहले के उदाहरणों की तरह, पार्टी ने उन चार शंकराचार्यों का हवाला देकर अपने फैसले का बचाव करने की कोशिश की जो इस आधार पर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल नहीं हो रहे हैं कि यह धर्म शास्त्रों का उल्लंघन है. आगे पार्टी ने शास्त्रों का हवाला देते हुए ये भी बताया किया कि अधूरे मंदिर में प्रतिष्ठा समारोह आयोजित नहीं किया जा सकता है.

साफ तौर से, धर्मनिरपेक्षता पर संवैधानिक स्थिति की तरफ कांग्रेस पार्टी की कोशिश अल्पकालिक साबित हुई.

(अनीता कत्याल दिल्ली स्थित एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनसे @anitaakat पर संपर्क किया जा सकता है. यह एक ओपिनियन आर्टिकल है और ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

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