ड्रग्स माफिया पर शिकंजा कसने से लेकर आलोचकों और किसानों को चुप कराने तक? From tightening the noose on drugs mafia to silencing critics and farmers? helobaba.com
![ड्रग्स माफिया पर शिकंजा कसने से लेकर आलोचकों और किसानों को चुप कराने तक? From tightening the noose on drugs mafia to silencing critics and farmers? helobaba.com 1 1706096202 Untitled design 1](/wp-content/uploads/2024/01/1706096202_Untitled_design__1_.jpg.webp)
2024 की शुरुआत में, ED द्वारा दो किसानों को PMLA के तहत समन जारी किए जाने की खबर आई और इस पर हंगामा मच गया, जिसके बाद ED को मामले को बंद करने का सार्वजनिक ऐलान करना पड़ा. यह मामला PMLA के दो दशकों के सफर का सार दर्शाता है, कि किस तरह बड़े अपराधियों को उनके जुर्म से फायदा उठाने से रोकने के लिए बनाया गया एक कड़ा कानून एक ऐसा कानून बन गया है, जिसे किसी भी शख्स के खिलाफ लागू किया जा सकता है, जहां कथित तौर पर कुछ पैसे का आदान-प्रदान होता है और ED के अधिकारियों को अपनी मर्जी से दमनकारी PMLA प्रावधानों को लागू करने के लिए लगभग असीमित अधिकार देता है.
यहां राणा कपूर का मामला एक अच्छा उदाहरण है. 2020 में गिरफ्तार होने के बाद उन्होंने PMLA के तहत अधिकतम कैद का आधे से ज्यादा समय हिरासत में बिताया और दिसंबर 2023 में उन्हें जमानत दे दी गई, क्योंकि उनका मुकदमा अभी तक शुरू भी नहीं हुआ है (हालांकि वह अभी भी जेल से बाहर नहीं आए हैं). फिर भी, इस दौरान यह पक्का करने के लिए कि संपत्ति ठिकाने न लगा दी जाए, ED कई हजार करोड़ रुपये की संपत्ति सीज़ कर दी. PMLA के तहत मनमानी और अनुचित रूप से कठोर दमनकारी व्यवस्था ने कानून की प्रक्रिया को ही सजा में बदल दिया है और प्री-ट्रायल हिरासत को पूरी तरह से सजा जैसा बना दिया है.
PMLA की कार्रवाइयों के बारे में सबसे ज्यादा उत्सुकता से तब पढ़ा जाता है जब इसे राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ लागू किया जाता है, चाहे बदलाव संगठित हों या असंगठित, एक बार जब हम उस कार्रवाई के पीछे के तर्क को समझ लेते हैं तो यह साफ हो जाता है कि मौजूदा रवैया कानून का इस्तेमाल कर जनता के एक वर्ग को परेशान करने वाला नहीं है. इसके बजाय, आज यह एक एजेंसी द्वारा कानून का सहारा लेकर जनता के किसी भी वर्ग को परेशान करने की ताकत का प्रतीक है जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता के तर्क को तब तक जूते की नोक पर रखती है, जब तक कि कोई और एजेंसी मामला दर्ज नहीं कर लेती है. और यह सब आत्म नियंत्रण और संतुलन की उस एजेंसी की अच्छी व्यवस्था के बीच हो रहा है. काश वो यह बात समझते भी.
(अभिनव सेखरी दिल्ली में एक वकील और स्कॉलर हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और यह लेखक के अपने विचार हैं. द क्विंट इनके लिए जिम्मेदार नहीं है.)
(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)