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“बादशाहों को सिखाया है कलंदर होना, आप आसान समझते हैं मुनव्वर होना” helobaba.com

शायरी में हिंदू-मुस्लिम एकता की झलक

मुनव्वर राना की शायरी से सामाजिक बंधुत्व और हिंदू-मुस्लिम एकता की भी महक आती है, जो हिंदुस्तान की एक पहचान है. उनके द्वारा मां पर लिखी गई शायरी तो सामाजिक दायरों को तोड़ती हुई सुनी ही गई लेकिन उन्होंने कुछ ऐसे शेर भी लिखे, जो सामाजिक सौहार्द को सींचने का काम करते हैं.

उर्दू जबान और हिंदी भाषा को बताया दो बहनें

मुनव्वर राना उर्दू जबान के शायर थे, लेकिन उन्हें हिंदी के मंचों पर भी देखा और सुना गया. उन्होंने अपने दौर के हिंदी कवियों के साथ ठहाके लगाए, शायरियां पढ़ीं और स्टेज शेयर किए. उर्दू और हिंदी दो अलग-अलग भाषाएं हैं, दोनों की अपनी अगल तहजीब है लेकिन मुनव्वर राना ने इन दोनों भाषाओं को एक-दूसरे की सगी बहन बताया और कहा कि इन दोनों बहनों का रिश्ता ऐसा है, जो दुनिया में कहीं भी दो जिंदा ज़बानों में देखने को नहीं मिलता है. उनका मानना था कि दोनों भाषाएं एक-दूसरे के बगैर अधूरी हैं. वो अपने एक शेर में कहते हैं…

“लिपट जाता हूं मां से और मौसी मुस्कुराती है

मैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूं हिन्दी मुस्कुराती है”

“सगी बहनों का जो रिश्ता है उर्दू और हिन्दी में

कहीं दुनिया की दो ज़िंदा ज़बानों में नहीं मिलता”

‘यादों के लोहबान’ में रहेंगे मुनव्वर राना

– मुनव्वर राना

साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजे गए थे मुनव्वर राना

मुनव्वर राना साहब को उनकी एक उर्दू भाषा की रचना ‘शाहदाबा’ के लिए साल 2014 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. इससे पहले 2012 में उर्दू साहित्य में अहम योगदान के लिए उनको शहीद शोध संस्थान की तरफ से ‘माटी रतन सम्मान’ से नवाजा गया था.

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