बिलकिस बानो केस में ‘गुजरात फैसला देने में सक्षम नहीं’, SC में क्या हुआ |Bilkis Bano Case SC quashes State government decision Gujarat Riots 2022 What happened in Court helobaba.com
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दरअसल, गुजरात में 2002 के सांप्रदायिक दंगों के दौरान बिलकिस बानो सहित कई हत्याओं और सामूहिक दुष्कर्म के लिए आजीवन कारावास की सजा पाए 11 दोषियों की सजा में छूट को चुनौती देने वाली याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी.
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार के फैसले को रद्द करते हुए कहा कि गुजरात सरकार फैसला देने में सक्षम नहीं थी. उन्होंने कहा कि ने सभी 11 दोषी दो सप्ताह के भीतर जेल अधिकारियों को रिपोर्ट करें.
गुजरात सरकार की तरफ से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एसवी राजू ने कहा कि 1992 की छूट नीति के अनुसार दोषियों को राहत दी गई.
हालांकि, 2014 में एक कानून द्वारा बनाई गई नीति थी, जो मृत्युदंड अपराध के मामलों में रिहाई को रोकती है.
इस पर एएसजी ने कहा, ” दोषियों को 1992 की नीति के तहत माना गया क्योंकि उन्हें 2008 में दोषी ठहराया गया था.”
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह इस अदालत का कर्तव्य है कि वह मनमाने आदेशों को जल्द से जल्द सही करे और जनता के विश्वास की नींव को बरकरार रखे.
अगस्त में शुरू हुई 11 दिनों की लंबी सुनवाई के बाद, जस्टिस बीवी नागरत्ना और उज्जल भुइयां की खंडपीठ ने 12 अक्टूबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. इसके अलावा, अदालत ने गुजरात और केंद्र सरकार को उनके पास उपलब्ध मूल रिकॉर्ड जमा करने का भी निर्देश दिया.
फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति नागरत्ना ने शास्त्रीय यूनानी दार्शनिक प्लेटो का हवाला देते हुए कहा, “दंड प्रतिशोध के लिए नहीं बल्कि रोकथाम और सुधार के लिए दिया जाना चाहिए.प्लेटो ने अपने ग्रंथ में तर्क दिया है कि जहां तक संभव हो कानून देने वाले को उस डॉक्टर का अनुकरण करना चाहिए जो अपनी दवा का प्रयोग केवल दर्द के लिए नहीं, बल्कि रोगी का भला करने के लिए करता है.”
उन्होंने न केवल सजा का सुधारवादी सिद्धांत, बल्कि उन्होंने पीड़ितों और पीड़ित परिवारों के न्याय के अधिकारों और दोषियों को उनकी सजा में छूट या कमी करके दूसरा मौका देने के प्रतिस्पर्धी हितों की ओर इशारा करते हुए फैसले की प्रस्तावना भी की.
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि गुजरात राज्य द्वारा शक्ति का प्रयोग शक्ति को हड़पने और शक्ति के दुरुपयोग का एक उदाहरण है.
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