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विपक्ष जान ले कि यह बिना नियम के राजनीतिक युद्ध का दौर है hemant soren arrest jharkhand chief minister ed action bjp election opposition india alliance helobaba.com

बीजेपी ने अप्रतिबंधित राजनीतिक युद्ध का एक नया युग शुरू किया

कुछ लोगों का मानना है कि सोरेन के जेल के अंदर से फाइलें निपटाने के काम को राज्यपाल संवैधानिक मशीनरी के टूटने के रूप में देखते और “राष्ट्रपति से सरकार को बर्खास्त करने का अनुरोध” भी कर सकते थे. ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे यह बर्खास्तगी न्यायिक जांच में टिक पाती.

बीजेपी ने कुछ साल पहले उत्तराखंड और अरुणाचल में राज्य सरकारों को बर्खास्त करने की कोशिश करके कांग्रेस की पुरानी रणनीति का पालन करने की कोशिश की थी. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को कड़ी फटकार लगाई थी.

किसी भी स्थिति में, स्पष्ट बहुमत वाले UPA (संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन) के सभी विधायकों द्वारा चंपई सोरेन को अगले मुख्यमंत्री के रूप में विधिवत चुने जाने के बावजूद, राज्यपाल ने उन्हें 24 घंटे से अधिक समय तक शपथ लेने के लिए आमंत्रित करने की जहमत नहीं उठाई. वहीं दूसरी तरफ बिहार के राज्यपाल ने पहले नीतीश कुमार का इस्तीफा स्वीकार किया और फिर कुछ ही घंटों में उन्हें दोबारा पद की शपथ भी दिलाई. जब नागरिकों और विश्लेषकों ने स्थिति की बेरुखी की ओर इशारा किया तो आखिरकार 1 फरवरी की देर रात नए नेता को शपथ लेने के लिए आमंत्रित किया गया.

बुद्धिजीवी, उदारवादी और सिविल सोसाइटी लोकतंत्र के और अधिक विनाश पर शोक मनाएंगे. निस्संदेह, उन्हें इसका पूरा अधिकार है. लेकिन चुनाव लड़ने और जीतने के लिए राजनेताओं के लिए ऐसी महान भावनाएं किसी काम की नहीं हैं.

केवल दिखने वाले कुछ नाटकीय संकेत मतदाताओं के बीच बड़ा मैसेज दे सकते हैं. गिरफ्तारी के बाद जेल से ही फाइलें निपटाना शरू कर दें. समर्थक लोगों के बीच जाएं और बताएं कि कैसे बीजेपी किसी भी विपक्षी नेता को काम नहीं करने दे रही है. और एक्टिविस्टों को नैतिकता का प्रचार करने दीजिए. जब राजनेता, विशेषकर कांग्रेस नेता नैतिकता और संवैधानिक मानदंडों का हवाला देते हैं, तो यह ठीक नहीं बैठता है. ‘WhatsApp यूनिवर्सिटी’ का भला हो कि, यहां तक ​​कि जो भारतीय राजनीति से ग्रस्त नहीं हैं, वे भी इंदिरा गांधी, आपातकाल के बारे में जानते हैं और कैसे उन्होंने लगभग 50 बार विधिवत निर्वाचित राज्य सरकारों को बर्खास्त कर दिया था.

अंततः, भ्रष्टाचार के बारे में क्या?

लेखक को इसमें कोई संदेह नहीं है कि प्रधानमंत्री व्यक्तिगत रूप से भ्रष्ट नहीं हैं. यह भी एक सच्चाई है कि पिछले दस वर्षों में कोई भी बड़ा घोटाला सामने नहीं आया है. लेकिन यह कहना हास्यास्पद है कि वह भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं. सार्वजनिक रूप से अजित पवार पर बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाने के एक दिन बाद, वह NDA में शामिल हो गए.

आप तय करें कि इससे क्या संदेश जा रहा है.

(सुतानु गुरु सीवोटर फाउंडेशन के कार्यकारी निदेशक हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)

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