Climate Change: बर्फबारी में अभूतपूर्व कमी, शीतकालीन सूखे ने हिमालय को अपनी आगोश में लिया helobaba.com
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लचीलेपन का बचाव: टिकाऊ भविष्य के लिए हिमालय में सर्दियों के सूखे को समझना होगा
हिमालय की खास पहचान बर्फ से ढकी चोटियां नंगी हैं, ऐसे में फिक्र केवल खूबसूरत नजारों तक सीमित नहीं हैं; इसमें कृषि, पर्यटन और क्षेत्र की इकोलॉजिकल स्थिरता की नींव भी शामिल है. ग्लोबल वार्मिंग से बिगड़े असामान्य मौसम पैटर्न के नतीजे में कम बर्फबारी से पर्वतीय समुदायों के परंपरागत आजीविका तंत्र को भी खतरा है.
बर्फ जमा होने, ग्लेशियर पिघलने और डाउनस्ट्रीम नदी जल व्यवस्था के बीच जटिल परस्पर संबंध पश्चिमी विक्षोभ के बदलते आयाम को समझने और निगरानी करने के फौरन कदम उठाने की जरूरत है. जलवायु परिवर्तन से हुई यह मौसमी घटना हिमालय क्षेत्र की जल सुरक्षा की कुंजी है.
कम बारिश, कृषि नुकसान और आपदाओं के बढ़ते खतरों की चुनौतियों के बीच, इनका सामना करने के लिए कदम उठाने और समझदारी भरे फैसले लेने की जरूरत है. पश्चिमी विक्षोभ की निगरानी के लिए एक राष्ट्रीय कार्यक्रम बनाने और भरोसेमंद वैज्ञानिक डेटा का इस्तेमाल करना इन अनिश्चितताओं से निपटने के लिए जरूरी हो जाता है.
हिमालयी आबादी का हालात का सामना करने के लिए तैयार होना स्ट्रेटजिक जल प्रबंधन, खाद्य उत्पादन को अनुकूलित करने, सिंचाई नेटवर्क को मजबूत करने और मजबूत आपदा जोखिम को कम करने रणनीतियों को लागू करने पर निर्भर करता है.
इन चुनौतियों में, चेतावनी साफ है– लचीलापन पैदा करें. तेजी से कदम उठाकर हिमालय में टिकाऊ भविष्य का रास्ता साफ हो सकता है, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि ये दिलफरेब चोटियां आने वाली पीढ़ियों के लिए जिंदगी और आजीविका का जरिया बनी रहेंगी.
(अंजल प्रकाश भारती इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी, इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस [ISB] में क्लिनिकल एसोसिएट प्रोफेसर [रिसर्च] हैं. वह ISB में सस्टेनेबिलिटी पढ़ाते हैं और IPCC रिपोर्ट में योगदान देते हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और यह लेखक के अपने विचार हैं. द क्विंट इनके लिए जिम्मेदार नहीं है.)
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