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Yeh Jo India Hai Na: चुनावी बॉन्ड SC से रद्द, लेकिन नेताओं द्वारा 16,000 करोड़ रुपये खर्च करने के बाद helobaba.com

जैसा कि द क्विंट ने अप्रैल 2018 में आपको बताया था कि कैसे हर इलेक्टोरल बॉन्ड में एक खास नंबर छिपा होता है, जिससे मोदी सरकार हर पॉलिटिकल डोनर की पहचान कर सकती थी.

द क्विंट की स्टोरी ने तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली के इस दावे को खारिज कर दिया कि यह योजना दानकर्ता की गुमनामी की गारंटी देगी, जिससे दानदाताओं को नकद दान के बजाय चुनावी बांड चुनने की अनुमति मिलेगी, जिससे चुनावों में ‘काला धन’ कम होगा.

हालांकि, हमने दिखाया कि छिपी हुए नंबर से सरकार को यह देखने की अनुमति मिली कि कौन अपने राजनीतिक विरोधियों को दान दे रहा है. इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि दान का बड़ा हिस्सा बीजेपी को गया. सुप्रीम कोर्ट ने भी काले धन पर अंकुश लगाने के सरकार के मूल दावे को खारिज कर दिया है.

चुनावी बांड की अपारदर्शिता स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के सिद्धांत का उल्लंघन करती है

स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) डोनर का नाम उन एजेंसियों के साथ शेयर करने के लिए बाध्य थी, जो सरकार के लिए काम करती हैं. लेकिन आम जनता को नहीं पता था कि

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने स्पष्ट रूप से कहा है कि कॉर्पोरेट दान पर सीमाएं हटाना और साथ ही उन्हें अपारदर्शी रखना ‘असंवैधानिक’ था.

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