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India’s Debt: केंद्र और राज्य स्तर पर भारत के कर्ज के आंकड़े एक उभरते संकट की ओर कर रहे इशारा helobaba.com

यह सब बढ़ते सरकारी (या मैक्रो) ऋण से कैसे जुड़ता है?

किसी भी बड़े उभरते बाजार वाले देश की तरक्की और लोगों को गरीबी से उबारते हुए ऊंची विकास की आकांक्षा रखने के लिए, उसके वित्तीय क्षेत्र में एक बड़ी ऋण-विस्तार योजना के साथ-साथ संकटों, बाहरी झटकों या विघटनकारी प्रतिक्रियाओं के लिए एक बड़ी उधारी की जगह होना जरूरी है.

भले ही भारत के फाइनेंशियल सेक्टर में क्रेडिट बढ़ रहा है (जो विकास की संभावनाओं के लिए जरूरी है), कम विकास चक्र के बीच ऊंचा ऋण स्तर दोनों के लिए कम गुंजाइश छोड़ेगा: चाहे वह दीर्घकालिक क्रेडिट एक्सपेंशन हो या उधारी की स्थिति.

हाल के बजट अनुमानों के अनुसार, मिजोरम मौजूदा समय में भारतीय राज्यों में सबसे ज्यादा जीडीपी के मुकाबले ऋण अनुपात से जूझ रहा है, जो कि 53% है.

इसके काफी करीब ही 44% और 47% के अनुपात के साथ क्रमशः पंजाब और नागालैंड दूसरे और तीसरे पायदान पर हैं.

ओडिशा ने सख्त राजकोषीय अनुशासन का पालन करके ऋण का निम्न स्तर बनाए रखा है. राज्य वार्षिक बजट घाटे की सीमा का पालन करता है, बढ़ी हुई ब्याज दरों को टालता है और उधार के खर्चों को कम करता है. ओडिशा के प्रदर्शन का श्रेय मुख्य रूप से धन उत्पन्न करने की क्षमता के बजाय व्यय पर उसके समझदारी भरे नियंत्रण को दिया जाता है, क्योंकि इसके लिए मौके बहुत सीमित हैं.

ओडिशा धान का एक बड़ा उत्पादक है, मगर यह पंजाब के उलट, भारी सब्सिडी लागत से बचने का इंतजाम करता है, जहां भारत के गेहूं की पर्याप्त मात्रा का उत्पादन करते समय अप्रत्याशित वर्षा पैटर्न है.

जैसा कि असम में देखा गया है, विकास परियोजनाओं के लिए ऋण में बढ़ोत्तरी वित्तीय संस्थानों और केंद्र सरकार से हासिल हुई है.

(दीपांशु मोहन, अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं और सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक्स स्टडीज (CNES), जिंदल स्कूल ऑफ लिबरल आर्ट्स एंड ह्यूमैनिटीज, ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के निदेशक हैं. यह एक ओपिनियन आर्टिकल है और यह लेखक के अपने विचार हैं. द क्विंट इनके लिए जिम्मेदार नहीं है.)

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